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'गुड गर्ल सिंड्रोम' क्या है, और क्यों लाखों लड़कियां इससे जूझ रही हैं?

क्या आपकी बेटी हर किसी को खुश रखने की कोशिश करती है? क्या वह अपनी पसंद से ज्यादा दूसरों की अपेक्षाओं को महत्व देती है? अगर हां, तो वह 'गुड गर्ल सिंड्रोम' की शिकार हो सकती है — एक ऐसा मनोवैज्ञानिक व्यवहार, जो आज की आधुनिक और पढ़ी-लिखी लड़कियों को भी भीतर से तोड़ रहा है।

क्या है 'गुड गर्ल सिंड्रोम'?

यह कोई मेडिकल बीमारी नहीं, बल्कि एक मानसिक दबाव है जिसमें लड़कियां या महिलाएं लगातार ‘अच्छी’, ‘संस्कारी’, ‘शालीन’ और ‘कुर्बानी देने वाली’ छवि बनाए रखने की कोशिश करती हैं। वे 'ना' कहने से डरती हैं, अपनी इच्छाएं दबा देती हैं, और अपने आत्म-सम्मान को दूसरों की खुशी के लिए कुर्बान कर देती हैं।

मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं?

क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीति वर्मा कहती हैं, "बचपन से ही लड़कियों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें सभी की बात माननी चाहिए, दूसरों को प्राथमिकता देनी चाहिए और विरोध न करना ही 'अच्छी लड़की' की पहचान है। धीरे-धीरे ये आदत उनकी खुद की पहचान को खत्म कर देती है।"

सोशल मीडिया बना रहा है नकली आदर्श

आज की लड़कियां सिर्फ परिवार से ही नहीं, सोशल मीडिया से भी एक 'परफेक्ट' बनने का दबाव महसूस कर रही हैं — जो खूबसूरत भी हो, समझदार भी, प्रोफेशनल भी और घरेलू भी। इस 'परफेक्शन प्रेशर' से कई महिलाएं anxiety और identity crisis से जूझ रही हैं।

क्यों खतरनाक है यह सिंड्रोम?

आत्म-संयम के नाम पर अपनी इच्छाओं की अनदेखी

लगातार 'हां' कहने की आदत से मानसिक थकावट

अपनी पहचान और आकांक्षाओं को खो देना

भावनात्मक शोषण की संभावना बढ़ना

 

क्या है समाधान?

लड़कियों को बचपन से ही ‘ना’ कहना सिखाना

अच्छी लड़की नहीं, खुश लड़की बनने की सीख

स्कूल और कॉलेज में assertiveness की ट्रेनिंग

माता-पिता और समाज की सोच में बदलाव

एक महिला की कहानी

26 वर्षीय आकृति बताती हैं, “मैं हर किसी की खुशी के लिए अपनी ज़रूरतें भूलती गई। जब खुद से सवाल पूछा कि मुझे क्या चाहिए, तो जवाब ही नहीं मिला।”

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निष्कर्ष:

'गुड गर्ल सिंड्रोम' कोई नई बात नहीं, लेकिन इस पर बात करना ज़रूरी है। जब तक लड़कियां सिर्फ दूसरों को खुश करने के लिए जिएंगी, वे खुद को कभी नहीं जान पाएंगी। ज़रूरत है ऐसी परवरिश और समाज की, जो उन्हें 'अच्छी लड़की' नहीं, एक स्वतंत्र और खुश लड़की बनने की आज़ादी दे।

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