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उप्र का प्रभार मिलने के बाद भी मप्र में सिंधिया का दबदबा कायम

 à¤®à¤§à¥à¤¯ प्रदेश कांग्रेस में गुटीय राजनीति दशकों से चली आ रही है और आज भी यह गाहे-ब-गाहे दिखाई दे जाती है। एक गुट की अगुआई करने वाले सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाए जाने के फैसले को भी इसी से जोड़कर देखा गया।

यह कहा गया कि सिंधिया को मप्र की राजनीति से दूर करने के लिए अन्य दिग्गज नेताओं ने रणनीति के तहत जिम्मेदारी दिलाई है। मगर आज भी सिंधिया का मप्र में उतना ही दबदबा है, जितना उप्र का प्रभार मिलने के पहले हुआ करता था।

सिंधिया परिवार के लिए मुखिया को उप्र भेजा जाना सकारात्मक साबित हुआ और प्रियदर्शनी राजे सिंधिया खुलकर पति के लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय हो गईं। वहीं, सिंधिया ने हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर आने के बाद मप्र के विकास की चिंता दिखाकर अपने विरोधियों को संकेत दिए कि वे देश में कहीं भी रहें, लेकिन मप्र उनके लिए अहम है।

मप्र कांग्रेस की राजनीति में मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सांसद सिंधिया के समर्थकों की बड़ी संख्या है। इनके अलावा विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के विंध्य क्षेत्र तो प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव समर्थक भी निमाड़ के अलावा अन्य क्षेत्र में मिल जाते हैं।हालांकि अजय सिंह और अरुण यादव खुद कहीं न कहीं कमलनाथ-दिग्विजय सिंह से भी जुड़े हैं। इस गुटबाजी की झलक विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री के चेहरे, टिकट वितरण और चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी से लेकर मंत्रिमंडल में संतुलन बनाए जाने तक दिखाई दी थी।

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